unfitabhay
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” वन्देमातरम ” .
व्यक्ति तो देश पूरा ही हुआ ,देश नेपथ्य में तुमने कर दिया ,
चारण और भाटों से शोभित ,शीर्ष भी अब हो गया,
जो सेनापति कभी बन सकते नहीं ,
विवेक पर राजा के क्या ,काल है अब चढ़ गया ,
भाटों को सेनापति बना ,युद्ध लड़े जाते नहीं ,
जो स्वामी सागर का रहा ,
गंदे तालाब में ,हो मस्त मस्त अब गया .
देश पूरा हमने तो दिया ,विश्वास तुम में देख कर ,
विश्वास क्यों को हमारे ,तिरोहित कर तुमने दिया ,
एक टुकड़े की लालसा भर ,मकसद रही आपका ,
क्यों कर वजन पूरे देश का ,तुमने सर पर रख अपने लिया ,
खैर छोड़ो अब इन बातों को सनम ,
हम सुलझाने में स्वयं समर्थ हैं ,
कह के एक शब्द ” वन्देमातरम ” .
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